हिन्दू धर्म के एकमात्र धर्मग्रंथ है वेद। वेदों के चार भाग हैं- ऋग, यजु, साम और अथर्व। वेदों के सार को वेदांत या उपनिषद कहते हैं और उपनिषदों का सार या निचोड़ “भगवद गीता” में हैं।
श्रीमद भगवद गीता हिन्दुओं का सर्वमान्य एकमात्र धर्मग्रंथ है। श्रीमद् भगवद गीता, जिसे “गीता” के रूप में भी जाना जाता है|
यह महाकाव्य महाभारत का एक हिस्सा है और इसे हिंदू धर्म के पवित्र लेखों में से एक माना जाता है।
सभी हिंदू, साथ ही साथ अन्य देशों के कई गैर-हिंदू, श्रीमद भगवद गीता को परम पवित्र साहित्य के रूप में प्रचारित करते हैं।
इसके अलावा, भगवान कृष्ण के भक्त अपने दैनिक जीवन में इस पवित्र पुस्तक का पाठ करते हैं।
भगवद गीता धर्म, आस्तिक भक्ति और मोक्ष के योगिक आदर्शों से संबंधित हिंदू अवधारणाओं का एक संश्लेषण है।
पाठ में सांख्य-योग दर्शन के सिद्धांतों को भक्ति, ज्ञान, कर्म और राज योगों में शामिल किया गया है।
श्रीमद भगवद गीता वास्तव में क्या है?
गीता पांडव राजकुमार अर्जुन और उनके सलाहकार और सारथी कृष्ण के बीच का संवाद है।
पांडवों और कौरवों के बीच युद्ध के कारण धर्म युद्ध की शुरुआत में अर्जुन नैतिक कठिनाई और पीड़ा से दूर हो गया।
उन्हें चिंता है कि क्या उन्हें अपने परिवार के खिलाफ हिंसा के इन कृत्यों को त्याग देना चाहिए और कृष्ण की सलाह लेनी चाहिए, जिनके उत्तर भगवद गीता हैं।
कृष्ण-अर्जुन चर्चा में आध्यात्मिक विषयों की एक विस्तृत श्रृंखला शामिल है, जिसमें नैतिक विवाद और दार्शनिक कठिनाइयाँ शामिल हैं जो युद्ध से बहुत आगे तक फैली हुई हैं।
भगवद गीता का महत्व
भगवद गीता “चीजों की प्रकृति” के बारे में एक आध्यात्मिक ग्रंथ है। यह मानवता, इसमें हमारे स्थान के साथ-साथ ज्ञान और खुशी प्राप्त करने के लिए हमें जो कदम उठाने चाहिए, उसके बारे में बोलता है।
इसके अलावा, यह ज्ञान के पथ और परम वास्तविकता के साथ मानवता के संबंध से संबंधित है।
भगवद गीता एक महत्वपूर्ण आध्यात्मिक ग्रंथ है क्योंकि यह व्यक्ति को हर चीज के बारे में प्रश्न पूछने का अधिकार स्थापित करता है।
यह इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि यह “बारहमासी दर्शन” से जुड़ा है। जर्मन दार्शनिक लाइबनिज ने इस वाक्यांश का उपयोग उन बुनियादी आवर्ती अवधारणाओं की पहचान करने के लिए किया है
जो सभी दर्शनों की नींव हैं, विशेष रूप से धार्मिक-दार्शनिक विचारों में गूढ़ पैटर्न।
इस दर्शन का उद्देश्य मनुष्य को यह समझना है कि वे वास्तव में कौन हैं और उनके जीवन का उद्देश्य क्या है।
कुछ महत्वपूर्ण भगवद गीता श्लोक –
भगवदगीता में 18 अध्याय हैं जिसमे आपको कुल 700 छंद मिलते हैं श्रीमद्भागवत गीता की मूल भाषा संस्कृत है|
अभी तक भगवदगीता जिसे 175 भाषाओं में अनुवादित किया जा चुका है जैसे अरबी, चीनी, रूसी, स्पेनिश, इतालवी, जापानी, कोरियाई, फारसी, डच, फ्रेंच, जर्मन, उर्दू इंग्लिश इत्यादि।
गीता की गणना उपनिषदों में की जाती है। इसीलिये इसे गीतोपनिषद् भी कहा जाता है।
दरअसल, यह महाभारत के भीष्म पर्व का हिस्सा है।
महाभारत में ही कुछ स्थानों पर उसका हरिगीता नाम से उल्लेख हुआ है। (शान्ति पर्व अ. 346.10, अ. 348.8 व 53)।
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि॥
(द्वितीय अध्याय, श्लोक 47)
अर्थ: कर्म पर ही तुम्हारा अधिकार है, कर्म के फलों में कभी नहीं… इसलिए कर्म को फल के लिए मत करो। कर्तव्य-कर्म करने में ही तेरा अधिकार है फलों में कभी नहीं। अतः तू कर्मफल का हेतु भी मत बन और तेरी अकर्मण्यता में भी आसक्ति न हो।
हे कौन्तेय (अर्जुन), और निश्चय करके युद्ध करो…हतो वा प्राप्यसि स्वर्गम्, जित्वा वा भोक्ष्यसे महिम्।
तस्मात् उत्तिष्ठ कौन्तेय युद्धाय कृतनिश्चय:॥
(द्वितीय अध्याय, श्लोक 37)
अर्थ: यदि तुम (अर्जुन) युद्ध में वीरगति को प्राप्त होते हो तो तुम्हें स्वर्ग मिलेगा और यदि विजयी होते हो तो धरती का सुख पा जाओगे… इसलिए उठो, हे कौन्तेय (अर्जुन), और निश्चय करके युद्ध करो।
ध्यायतो विषयान्पुंसः सङ्गस्तेषूपजायते।
सङ्गात्संजायते कामः कामात्क्रोधोऽभिजायते॥
(द्वितीय अध्याय, श्लोक 62)
अर्थ: विषय-वस्तुओं के बारे में सोचते रहने से मनुष्य को उनसे आसक्ति हो जाती है। इससे उनमें कामना यानी इच्छा पैदा होती है और कामनाओं में विघ्न आने से क्रोध की उत्पत्ति होती है। इसलिए कोशिश करें कि विषयाशक्ति से दूर रहते हुए कर्म में लीन रहा जाए।
क्रोधाद्भवति संमोह: संमोहात्स्मृतिविभ्रम:।
स्मृतिभ्रंशाद्बुद्धिनाशो बुद्धिनाशात्प्रणश्यति॥
(द्वितीय अध्याय, श्लोक 63)
अर्थ: क्रोध से मनुष्य की मति-बुदि्ध मारी जाती है यानी मूढ़ हो जाती है, कुंद हो जाती है। इससे स्मृति भ्रमित हो जाती है। स्मृति-भ्रम हो जाने से मनुष्य की बुद्धि नष्ट हो जाती है और बुद्धि का नाश हो जाने पर मनुष्य खुद अपना ही का नाश कर बैठता है।
यद्यदाचरति श्रेष्ठस्तत्तदेवेतरो जन:।
स यत्प्रमाणं कुरुते लोकस्तदनुवर्तते॥
(तृतीय अध्याय, श्लोक 21)
अर्थ: श्रेष्ठ पुरुष जो-जो आचरण यानी जो-जो काम करते हैं, दूसरे मनुष्य (आम इंसान) भी वैसा ही आचरण, वैसा ही काम करते हैं। श्रेष्ठ पुरुष जो प्रमाण या उदाहरण प्रस्तुत करते हैं, समस्त मानव-समुदाय उसी का अनुसरण करने लग जाते हैं।
नैनं छिद्रन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावक:।
न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुत॥
(द्वितीय अध्याय, श्लोक 23)
अर्थ: आत्मा को न शस्त्र काट सकते हैं, न आग उसे जला सकती है। न पानी उसे भिगो सकता है, न हवा उसे सुखा सकती है। यहां श्रीकृष्ण ने आत्मा के अजर-अमर और शाश्वत होने की बात की है।
यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत:।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्॥
(चतुर्थ अध्याय, श्लोक 7)
अर्थ: हे भारत (अर्जुन), जब-जब धर्म की ग्लानि-हानि यानी उसका क्षय होता है और अधर्म में वृद्धि होती है, तब-तब मैं श्रीकृष्ण धर्म के अभ्युत्थान के लिए स्वयं की रचना करता हूं अर्थात अवतार लेता हूं।
परित्राणाय साधूनाम् विनाशाय च दुष्कृताम्।
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे-युगे॥
(चतुर्थ अध्याय, श्लोक 8)
अर्थ: सीधे साधे सरल पुरुषों के कल्याण के लिए और दुष्कर्मियों के विनाश के लिए…धर्म की स्थापना के लिए मैं (श्रीकृष्ण) युगों-युगों से प्रत्येक युग में जन्म लेता आया हूं।
श्रद्धावान्ल्लभते ज्ञानं तत्पर: संयतेन्द्रिय:।
ज्ञानं लब्ध्वा परां शान्तिमचिरेणाधिगच्छति॥
(चतुर्थ अध्याय, श्लोक 39)
अर्थ: श्रद्धा रखने वाले मनुष्य, अपनी इन्द्रियों पर संयम रखने वाले मनुष्य, साधन पारायण हो अपनी तत्परता से ज्ञान प्राप्त करते हैं, फिर ज्ञान मिल जाने पर जल्द ही परम-शान्ति को प्राप्त होते हैं।
सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज।
अहं त्वां सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुच:॥
(अठारहवां अध्याय, श्लोक 66)
अर्थ: (हे अर्जुन) सभी धर्मों को त्याग कर अर्थात हर आश्रय को त्याग कर केवल मेरी शरण में आओ, मैं (श्रीकृष्ण) तुम्हें सभी पापों से मुक्ति दिला दूंगा, इसलिए शोक मत करो।
श्रीमद्भागवत गीता क्यों पढ़े?
भगवदगीता एक ऐसी क़िताब है जिसकों हर क्षेत्र का व्यक्ति पढ़ सकता हैं चाहे वो वैज्ञानिक हो , या राजनीतिज्ञ, संन्यासी हो , या दार्शनिक, शिक्षक हो या विद्यार्थी कोई भी हो सभी को जीवन मे भगवदगीता को ज़रूर पढ़ना चाहिए |
माना जाता है कि अगर आपके घर मे भगवद्गीता है तो यह आपके घर मे सुखः, शांति औऱ तरक्की को लेकर आती हैं इसलिए आप इस किताब का अध्ययन करो या न करो लेकिन यह आपके घर मे अवश्य होनी चाहिए |
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